बरसात (विरह)
सब सो जाते नींद में,तब होती बरसात।
मौन अकेली भींगती,मैं तो सारी रात।।।
उर में नव रस घोलती,ये बारिश चुपचाप।
चोट जिया पर मारती, बूँदों की हर थाप।।
मन के खाली फ्रेम पर,खींच रही कुछ चित्र।
खो जाती हूँ ख्वाब में, तनहाई है मित्र।।
चहक रहा सारा जगत,मैं मुरझाई मौन।
बदन टूटता रात में,उन्हें बताए कौन।।
-लक्ष्मी सिंह
नई दिल्ली