बरखा रानी
बरखा रानी आ गई,कर सोलह श्रृंगार।
बिजली की पायल पहन,करे मधुर झंकार।।
काली चुनरी ओढ़ कर,बरसे धन बौछार।
आगे आगे नाचती,गाती चले बयार।।
इन्द्रधनुष का आभरण,बहुरंगा मनियार।
नीलगगन में टाँक दी,सतरंगी उपहार।।
लोचन सुरमा शर्वरी,घुप सघन अंधकार।
दीप जलाकर नाचती,जुगनू की अंगार। ।
पाहुन आये आँगना,खुले हृदय का द्वार।
मोती बनकर आस की,छमछम पड़े फुहार।।
मँहकी बगिया आम की,जामुन गिरे हजार।
बेणी फूलों से लदी,बैठी घूँघट डार।।
वन मयूर नर्तन करे,पपिहा रहा पुकार।
मेढ़क झिन्गुर गा रहें,स्वागत में मल्हार।।
पंचम स्वर गाती विहग,करती है मनुहार।
झूम-झूमकर तालियां,बजा रही रतनार।।
नदियाँ सभी उफान पर,बहे तेज रफ्तार।
वर्षा की हर बूँद में, नव जीवन की धार।।
मिट्टी की सोंधी महक,ले स्नेहिल उद्गार।
नव अंकुर आये पनप,पाकर मधुर दुलार।
कजरी झूला झूलती,लिए तीज त्योहार।
नाव चलाते बालगण,छपक-छपक छपकार।।
सज धज कर धरणी खड़ी, अपनी बाँह पसार।
परम मनोहर सुन्दरी,आई कुदरत द्वार।।
ऋतुओं की रानी द्रवित, हरियाली विस्तार।
छटा अनोखी देखकर, मुग्ध हुआ संसार।।
-लक्ष्मी सिंह
नई दिल्ली