बरखा रानी का आगमन
चारो तरफ हरियाली छाई
बरखा आई बरखा आई
बादल गरजा, गड़-गड़-गड़
बारिश आई छम-छम-छम
धरा का रुप हैं, अनुपम बिखरा
चारो ओर, रंग हरा हैं पसरा
उँचे पर्वतो से, बाते करते मेघ
बूंदों की,वसुंधरा पर सजाते सेज़
ऊंघते,अनमने से थे जो, जंगल
उनका भी हो गया अब मंगल
आपस में,खुशी से,खूब बतियाते हैं
आभार गीत, बरखा को सुनाते हैं
सुखी,प्यासी नदियाँ भी अब
कल-कल का शोर सुनाती हैं
राहगीर की प्यास बुझाकर,स्वयं
खुद पर ही,इतराती हैं
बागो में, रंग भरे फूल
अनेक,महकने लगे हैं
पक्षी भी तो,डाल-डाल पर
खुशी से, चहकने लगे हैं
वर्षा ऋतु की ताक लगाए
किसान भी फूले नहीं समाता हैं
झट से अपनी बोवनी की
तैयारी में लग जाता हैं
वर्षा ऋतु का आगाज, और
न जाने कितने किस्से सुनाता हैं
रंग-बिरंगी, खुशब लिए,प्रक्रति का
ये अंदाज़ सबको भाता हैं
रेखा कापसे
होशंगाबाद मप्र