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12 Aug 2021 · 1 min read

बरखा आई घूम – घूम के

बरखा आई बून्द – बून्द के करते मृदङ्ग
बढ़ – बढ़ आँगन के चढ़ते – उतरते बहिरङ्ग
सङ्गिनी चली बयार की लीन्ही सतरङ्ग
जल – थल मिलन मिली छूअन हर्षित अनुषङ्ग

ओढ़ घूँघट के दामिनी स्वर में झूम – झूम
आती क्षितिज से घूमड़- घूमड़ घूम – घूम
घोर- घनघोर पुलकित आशुग ठूम – ठुमके
स्पन्दन क्रन्दन में सङ्गीत रश्मि नूपुर – सी रुनझून

निशा बिछाती विभोर विरहनी सावन
गुलशने निवृत्ति निझरि – सी स्वर आप्लावन
पिक मीन सिन्धू वात तड़ित सङ्ग करावन
हरीतिमा नभचर जीवन सृजन कितने मनभावन !

कर जोर विनती तुङ्ग धरा करती आलिङ्गन
इन्द्रधनुषीय छटाएँ छलकाएँ तरणि आँगन
कृष्ण राधा सखियाँ सङ्ग करती प्रेमालिङ्गन
हो धरा प्रतिपल प्रेमिल धोएँ ध्वनि लिङ्गन

हूँ – हूँ स्वर कलित भव में चिन्मय हुँकार
तड़ित ऊर्मि वारिद अँगन में अर्ध्वङ्ग धुङ्कार
पन्थ- पन्थ पन्थी आहिश्वर रव ओङ्कार
मण्डूक ध्वनि नतशिर झमाझम बरखा झमङ्कार

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