बयार
ये उल्टी बयार है, है ये खतरा बड़ा,
दिखाने का नीचा, चलन चल पड़ा।
चढ़ूंगा शिखर पर, दमन तेरा करके,
नए युग का ज्वर, सर है सबके चढ़ा।।
ये प्रतियोगी घर में, हैं प्रतिद्वंदी घर में,
पागल सुकूं ढूंढते हैं, ये सारे शहर में।
सुबहे बनारस की ठंडी हवा, हैं वो ढूढते,
भरी दोपहर वो भी दिल्ली शहर में।।
है सब इनको मालूम है ज्ञानी बड़े,
मगर कई पीढ़ियों से है पीछे खड़े।
नहीं दिखती कमियां खुद की है “संजय”
नहीं देख पाते उजाले में भी, हैं अंधे बड़े।।