*बन जाते सिरमौर (गीत)*
बन जाते सिरमौर (गीत)
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दल-बदलू जिस दल में जाते बन जाते सिरमौर
(1)
दलबदलू-जन हृदय-हीन रचना प्रभु की कहलाते
इन के भीतर झॉंको तो केवल दिमाग ही पाते
इनसे बढ़कर मिला न कोई अवसरवादी और
(2)
यह बे-पेंदी के लोटे हैं ,रोज लुढ़कते रहते
नए-नए दल को रोजाना पूज्य पिताजी कहते
जहॉं मिली थाली झट जाकर खा लेते हैं कौर
(3)
इनके कुछ सिद्धांत नहीं ,आदर्शों से कब नाता
अपना उल्लू सीधा करना केवल इनको आता
गिरगिट-से जीवन-परिचय पर इनके करिए गौर
दल-बदलू जिस दल में जाते ,बन जाते सिरमौर
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रचयिता : रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा ,रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 999761 5451