” बना रहे उत्साह यही ” !!
पहुंच रहे हैं तुम भी आना ,
विद्यालय की राह यही .
बस्ता काँधे पर अपने है ,
खेल छूटते अभी यहीं !
राह अभी लगती है लम्बी ,
इंतज़ार की घड़ी नहीं !
कामकाज निबटा कर आओ ,
हम भी रखते चाह यही !!
माँ ने सौंपी जिम्मेदारी ,
बड़ा भरोसा है तुम पर .
खेल कूद हम रमते फिरते ,
बहती तुम जैसे निर्झर .
पढ़ना लिखना हुआ ज़रूरी ,
तुम भी पाओ थाह यही .
श्रम से मुंह चाहे ना मोडो ,
समय चुरा लो थोड़ा सा !
शिक्षा की पूँजी सब चाहें ,
वक्त कहाँ है ठहरा सा !
राह जो पकड़ी भूल न जाना ,
मुँह से निकले आह यही !!
कल के सपने आँखों में जो ,
हमने आज बसाये हैं !
राह अगर ना चुनी सही तो ,
यों ही वे मुरझाये हैं !
हिम्मत से आगे है बढ़ना ,
बना रहे उत्साह यही .
स्वरचित / रचियता :
बृज व्यास
शाजापुर ( मध्यप्रदेश )