बनारस की ढलती शाम,
बनारस की ढलती शाम,
स्नान का तीर्थ, ध्यान का अराम।
गंगा के किनारे जहाँ प्रेम बसे,
भव्य हर घटा, पवित्रता विशेष।
मंदिरों की छाया, गलियों का सौंदर्य,
मन को भावुक कर देता हर वाक्य।
सुंदर सा वातावरण, धर्म का आदान-प्रदान,
हर कोने में बसी धरोहरों की मिठास।
प्यारी बनारस की ढलती शाम,
वहाँ की मिट्टी में बसी है प्रेम की बात।
गंगा आरती का दीपक, मन को जलाए,
भगवान के नाम से हर दर्द मिटाए।
सजीव बनारस की रौशनी,
हर मन को बाँध लेती वो अपनी जोरों में।
इस शहर की कहानी, वो अनमोल हिरदय की धरोहर,
जिसमें है भगवान की शान, प्रेम की बहार।