बनल देहिया बा माटी के, निरेखला से जी का होई।
बनल देहिया बा माटी के, निरेखला से इ का होई।
पिंजरवा तोड़ि के एक दिन, सुगनवा त दफा होई।
चलीं रहिया भलाई के, जिन्दगियां के इहे मक़सद,
विधाता भेजले बाड़ें, ऊ कमवा त पता होई।
भरम पलले से कवनो फायदा, केहू के ना होला,
तऽ बोला तू भरम पलबऽ, का कवनो फायदा होई।
ठठरिये पर उठा तोहके, ले जइहें चारिगो मनई,
जियत जालऽ त लागेला, जगत से आसरा होई।
ई सावन भा ई फागुन त, कबो आवेला चलि जाला,
कबो सोचे कि हमरा से, केहू के कुछ गिला होई।
ई जिनिगी में अन्हरिया, घेर लिहले बा तू मति सोचा,
अंजोरिया से बनल दूरी, भइल कवनो खता होई।
ओहरिया लाल भा उज्जर, मिले ऊ आखिरी थाती,
ना कुछऊ साथ जाई हो, सचिन सब कुछ फना होई।
पं.संजीव शुक्ल ‘सचिन’