बनकर कोयल काग
बुद्ध धरा से है उठी, इक जुटता की राग।
होगा ना कल्याण यूँ, बनकर कोयल काग।।
गर ऐसे लड़ते रहे, मिट जाएगा नाम।
संघ -संघ को त्याग दें, बन जाएगा काम।।
जब तक हम निज स्वार्थ का, नही करेंगे त्याग।
धधकेगी यूँ ही सदा,नही बुझेगी आग।।
मै ही मै की भावना, भरी हुई है आज।
मै की खातिर भूलते, हम से बनता काज।।
✍️जटाशंकर”जटा”