बदल सकती है तू माहौल
रचना नंबर (11)
बदल सकती है तू माहौल
नारी,तेरे जीवन की कहानी
मात-पिता की बात है मानी
पति-परिवार में है नौकरानी
बच्चों को देती है दाना-पानी
कभी न करती आना-कानी
अपने बंधन तू ही खोल…
बदल सकती है तू माहौल
पहले सबको दे भोग-मोहन
बचा-खुचा ही तेरा भोजन
बनी रही अपनी ही सौतन
माँग अब प्रभु से मोहलत
सेहत तेरी है सच्ची दौलत
तेरा जीवन है अनमोल…
बदल सकती है तू माहौल
भूली क्यों झाँसी की रानी
और पद्मिनी की कुरबानी
मोती की पोती की कहानी
नारी बन सकती है मर्दानी
यह बात नहीं है अब पुरानी
ज़रा अपनी आँखें खोल…
बदल सकती है तू माहौल
मर्दों से दुगना काम करती
मेहनत का तू वेतन पाती
खून,पसीना करके कमाती
फ़िर भी ऊँचा पद न पाती
तू नहीं कर पाती अनाचार
पहचान तू अपना मोल…
बदल सकती है तू माहौल
आस कभी नहीं रहे अधूरी
हो जाए तेरी हर आशा पूरी
तू ही है सारी सृष्टि की धुरी
फ़िर क्यों है मंज़िल से दूरी
नहीं करना अब तुझको देरी
अपना मुँह अब तू खोल…
बदल सकती है तू माहौल
स्वरचित
सरला मेहता
इंदौर