बदल रहा फिर से एक वर्ष
बदल रहा फिर से एक वर्ष।
तूफानों से जूझ-जूझ कर
अंधियारों से लड़ते-भिड़ते
बड़े-बड़े बगुले भी रोते
देख-देख चूजे का हर्ष।
बदल रहा फिर से एक वर्ष।
मजदूरों की रोटी रोती
रह जाती है खाली थाली
गद्य,पद्य,नाटक रोते हैं
लगी भूख,कैसा उत्कर्ष!
देखो बदल रहा है वर्ष।
कैसी करुणा,भाव अनोखे
अपनो पर कैसा विश्वास
सबकी माया छल ही जाती
कहाँ हर्ष,कैसा निष्कर्ष!
बदल रहा फिर से एक वर्ष।
प्रेम-सुधा की साँस मधुर
मधुर रहे जीवन की आस
सब जन प्रमुदित हों,झूमें गाएँ
सदा हर्ष ही हो निष्कर्ष!
देखो बदल रहा है वर्ष।
राष्ट्र-प्रेम उर में प्रतिपल हो
प्रतिदिन नव-संगीत सृजित हो
संवेदन से पूर्ण जगत हो
प्रभु कृपा हो प्रतिपल हर्ष।
नव रूप में आओ हे नव वर्ष!
सबके जीवन मे हो उत्कर्ष!
देखो बदल रहा है वर्ष।
फिर से बदल रहा एक वर्ष।
–अनिल कुमार मिश्र