बदली परिस्थितियों में
२- बदली परिस्थितियों में
जब होता है प्रेम
बदले-बदले लगते हैं दिन-रात
संसार का कण-कण
प्रेममय लगता है
हर ओर बिखरी
दिखाई देती हैं प्रेम कविताएँ
अकारण मुस्कुराने तो
कभी खिलखिलाने का मन करता है
अवगुण दिखते ही नहीं एक-दूसरे के
मान-मनुहार करने
नखरे उठाने/उपहार देने मन को भाते हैं
होता है जब परिवर्तित प्रेम विवाह में
तो बदल जाती हैं प्राथमिकताएँ
मैं/हम रह जाते हैं पीछे
परिवार/कर्तव्य हो जाते हैं प्रमुख,
फिर चल पड़ता है दौर
शिकवे-शिकायतों का
दिल-दिमाग में चलता है संघर्ष
लगने लगता है खो गया है प्रेम
इन बदली परिस्थितियों में भी
जो हर समय खिलखिलाए
वही सच्चा/शाश्वत प्रेम है
जिसमें समाया पूरा ब्रह्मांड है।
डा० भारती वर्मा बौड़ाई