बदलाव
अंदाज़ के बदलते ही
अंज़ाम बदल जाते हैं
अज़ीम कायनात के
आयाम बदल जाते हैं…
(१)
यहां ज़र्रे जब उठते हैं
बूटों के तले कुचलकर
तो चांद और तारों के
निज़ाम बदल जाते हैं…
(२)
आवाम के उतरते ही
खुलेआम सड़क पर
रंग महलों में बैठे हुए
हुक़्मरान बदल जाते हैं…
(३)
कोई मंसूर जब देता है
अनहलक का नारा
तो झूठे ख़ुदाओं के
फ़रमान बदल जाते हैं…
(४)
वक्त और हालात के
तकाज़े के मुताबिक
ज़िंदगी और मौत के
सामान बदल जाते हैं…
(५)
क्या आज की ख़ुशी को
कल पर टालना ठीक है
मौसम के साथ-साथ
अरमान बदल जाते हैं…
(६)
किसी शख़्स की क़ीमत
कम करके मत आंकिए
एक शेर के बदलते ही
दीवान बदल जाते हैं…
#Geetkar
Shekhar Chandra Mitra
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