आशा
🔥आशा🔥
आहत मन को, राहत कैसे बांटी जाए।
घोर निराशा घेरे मन को, चाहत कैसे बांटी जाए।।
अपनो की महफिल में है, पर मन उदास है।
भीतर कितना सूनापन है, बाहर दिखता अट्टहास है।।
तम सागर में घिरा है नाविक, रस्ता कैसे काटी जाए….. .
रथ के पहिए बीच समर में, ना जाने क्यों जाम हो गए।
निर्बल दिखती प्रबल भुजाएं, अस्त्र-शस्त्र बेकाम हो गए।।
दुश्मन इतना महाबली है, ग्रीवा कैसे काटी जाए…..
दुश्मन है अदृश्य छद्मवेशी, कैसे उससे निपटा जाए।
कहां मिलेंगे कृष्ण यहां, जिनकी बाहों में लिपटा जाए।।
कहां मिलेंगे सखा पार्थ, जिनसे मन तृष्णा बाटी जाए..
करें समर्पित स्वयं कृष्ण को, आशा के कुछ पुंज खिलेंगे।
मन मत हारो तुम्ही पार्थ हो, जब चाहोगे कृष्ण मिलेंगे।।
“आशा” ही तो कृष्ण पुंज है, बाटों जितनी बाटी जाए..