बदलाव पर शेर
हिसाब रखना है तो,
रख कुछ इस तरह,
कुछ शेष तो नहीं बचा,
अब देने के लिए,
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सनातन पर छाप है,
नूतन है अब प्राण,
पुरातन कौन कहे,
जब मूल बचा न पेड़,
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ले डूबती है मैं,
सतर्क मिला न कोय,
जिसे भी देखिये,
एक दूजे पर सिर रखे,
सोऐ मिलेंगे सब,
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प्रबुद्ध यो पहचान रे,
के जानेगो छोड़,
निरक्षर की होड़ नहीं,
मात पिता प्रमाण,
.
घट घट का यो कष्ट,
घटने का नाम नहीं,
जिसे भी छेड़िए,
आपबीती सुणाय,
.
कलतक तो परिधान पर,
बहुत रहे थे इतरा,
तराजू सजी विवेक की,
अब पहन दिखा,
.
महेंद्र