बदलते रिश्ते
प्रेम व्रेम इश्क विश्क यारी वारी, सब शब्दों की अय्यारी है।
चांद सा मुखड़ा दिल का टुकड़ा, कवियों की मक्कारी है।।
संपूर्ण समर्पण कर जिसने भी, हम सबको है सृजित किया।
बड़े गर्व से लिखते कहते फिरते, कि मां कितनी बेचारी है।।
कमियां वमियां अवगुण ववगुन, ये सब महज बहाना है।
तन चमकाना मन बहलाना, जगत को खूब दिखाना है।।
मां ऐसी है मां वैसी है, कहां पता मां तो मां है वो जैसी है।
अपनी मां पर गर्व न करते, मां गंगा में खूब नहाना है।।
पत्नी वत्नी बीबी वीवी सब, क्या माता जी नहीं बनेंगी।
या भविष्य में कोई भी, “मां”औलादे उनको नहीं कहेंगी।।
तेरी मां यदि घर बाहर है, तो तुम “संजय” समझ लो भाई।
हां भविष्य में तेरी बीबी तेरे संग अनाथाश्रम में साथ रहेंगी।।
जय सियाराम