बदलती विचारधारा
रामलाल हाल का सामान जमा रहे थे । यहाँ अभी उनके साथी आने वाले थे । रामलाल ने जब अपना घर बनवाया था, तब बेटे सुरेश के लिए तीन कमरे ऊपर बनवाए थे और नीचे अपने लिए बड़ा हाल बनवाया था । उसका नाम उन्होंने ” प्रसन्नाश्रम ” था । यहाँ स्वेच्छा से उनके साथी और दूसरा वृद्धजन आ कर रूक सकते थे । वह यहाँ समाचार पत्र पढ़ने के अलावा केरम , शतरंज आदि भी खेल सकते थे ।
रामलाल की सोच थी कि:
” आज की भागदौड़ और तनाव भरी जिन्दगी में बेटे -बहूओं को अपने हिसाब से जिन्दगी जीने देना चाहिए, हम लोगों की वजह से वह डिस्टर्ब नहीं हों । ”
इसलिए उन्होंने अपने घर में यह ” प्रसन्नाश्रम ” बनवाया था ।
तभी सुरेश ने कहा :
” पापा आपका पूरा सामान मैं ले आया हूँ और हाँ इस बार तो दीपावली के लिए भी मिठाई , लक्ष्मी जी की फोटो, दीपक , रोशनी वाली सीरिज , फल फूल बच्चों के लिए फुलझड़ी टिकली बगैरह सब है ।”
रामलाल ने कहा :
” हाँ बेट अच्छा किया , अब तू बहू को ले कर निकल जा उसको आफिस छोड़ देना , और हाँ दो बजे बच्चों को मैं बस स्टाप से ले आऊंगा , तू बिल्कुल चिंता मत करना ।”
इस तरह से रामलाल का बेटे बहू के साथ अच्छा सामन्जस्य चल रहा था और उनके ” प्रसन्नाश्रम ” में सभी साथी वृद्धजन खुशी-खुशी आते और दिन भर
इंजॉय करते ।
आज ” प्रसन्नाश्रम ” बहुत सुन्दर सजा था । अपने अपने घरों में पूजा के बाद सभी साथी बेटे बहुओं नाती पोतों के साथ आये हैं । यहां भी पूजन के बाद दीपावली मिलन चल रहा हैं बच्चे अपने दोस्तों के साथ , बहूएं और सब अपने हम उम्र लोगों के साथ मस्ती कर रहे हैं।
रामलाल कह रहे थे :
” वॄध्दाश्रम में हमें भेजने के नाम पर बच्चों को दोष देना उचित नहीं है , समय के अनुसार विचारधाराएं, मान्यताएं बदलनी चाहिए । आज बहुऐ भी नौकरपेशा हैं, और फिर इस मंहगाई में दो पैसे घर ही में आते हैं, तभी तो घर गृहस्थी अच्छे से चल पाऐगी । इसलिए हम लोग को भी उन्हें सहयोग करना चाहिए । ”
तालियों की गड़गडाहट के साथ सब एक दूसरे का मुँह मीठा करा रहे थे । न बुजुर्गों को अपने बेटों बहुओं से कोई शिकायत थी और न ही बुजुर्गों को अपने बेटे बहुओं से ।
सब लोग रामलाल के ” प्रसन्नाश्रम ” की तारीफ कर रहे थे जो रामलाल का एक सार्थक प्रयास था ।
स्वलिखित
लेखक संतोष श्रीवास्तव