बदलता_मौसम_और_तुम
आजकल तुम्हारे ही जैसा है कुछ,
मौसम का भी मिज़ाज,
हमें समझ ही नही आता कि,
आखिर कौन सा है ये अंदाज।
कभी धूप तो कभी बारिश,
ना जाने क्यों कर रही है,
कुदरत भी ये साजिश।
कभी प्रकृति को छुपाए,
ये घना कोहरा,
बादलों सी रंग लिए,
धुंध ये गहरा
ये सर्द हवाएं,
तुम्हारी याद दिलाएं।
मिजाज कुछ तुम सा ही है,
प्रतिक्षण एहसास कराएं।
ना जाने क्यों? ये मौसम भी,
तुम्हारे प्रभाव में है।
सब हमें ही कर रहे परेशां,
जो तुम्हारे अभाव में हैं।
मौसम का पल-पल बदलना,
हूबहू तुम्हारी राह पर चलना,
समझ ही नही आता…
अगले क्षण कैसा मिजाज होगा,
या तुम्हारे जैसा ही अंदाज होगा,
समझ ही नही आता…
सुनो ना…. ऐसे पल-पल
ना बदला करो तुम।
थोड़ा ठहरो ना ताकि मैं
तुम्हे पढ़ सकूं विस्तार से,
और लिखकर,
सहेज सकूं प्यार से,
अपनी कविताओं की किताब में,
तुम्हारी स्मृतियों का संग्रह।
@स्वरचित व मौलिक
शालिनी राय ‘डिम्पल’🖊️