“बदलता लाल रंग।”
“बदलता लाल रंग।”
शुभ अवसर पर लाल रंग का मुहूर्त होता है।
कहते लोग लाल रंग खूबसूरत होता है।
एक रक्त के लाल रंग से, समता होती है।
पैदा दिलों में,ममता होती है।
लाल रंग के गुलशन में, कलियाँ खिलती है।
लाल रंग के जोड़े में, दुल्हन सजती है।
लाल रंग का हसीन गुलाब,
दिल लुभाता है।
बन प्रेम-प्रतीक दिलों का,
मिलन करवाता है।
लाल सिंदूर से ब्याहता, मांग सजाती है।
भगवान को इससे तिलक कर,मंगल गीत गाती है।
अग्नि की लाल लपटें फेरे,सात करवाती है।
दो आत्माओं का साथ, जन्म सात करवाती है।
चेहरे की लालिमा ने ही, देश आजाद करवाया है।
लहू की लाल गंगा में नहाकर,तिरंगा फहराया है।
आंखों की धधकती लाल ज्वाला से,दुश्मन को जलाया है।
आने वाली हर मार्ग बाधा को दूर हटाया है।
लेकिन अब ये क्या होने लगा है।
लाल रंग क्यों रंग बदलने लगा है?
खून के एक लाल रंग ने क्यों हंगामा मचाया है?
क्यों इसने भाई को भाई से लड़ाया है?
दुल्हन बनने का अरमां क्यों दफन हो गया है?
लाल जोड़ा क्यों कफ़न हो गया है?
लाल गुलाब क्यों मुरझाने लगा है?
प्रेम-रंग क्यों बदल जाने लगा है?
सिंदूर क्यों मिटने लगा है?
भगवान का तिलक क्यों छूटने लगा है?
अग्नि की लपटें क्यों ठंडी होने लगी हैं?
रिश्तों की बुनियादें क्यों हिलने लगी हैं?
लोग क्यों आजादी संघर्ष भूलने लगे हैं?
क्यों लाल रंग से मुँह छिपाने लगे हैं?
डर है कहीं ये रंग बिल्कुल न बदल जाए…।
अपनी खूबसूरती कहीं पूरी न गवाए…।
इसलिए रोके इसे,दूर मत जाने दो।
अपनी आत्मा और शरीर में रच-बस जाने दो।
सुंदरता के चर्मोत्कर्ष पर, इसे छाने दो।
प्रिया प्रिंसेस पवाँर
स्वरचित,मौलिक
सर्वाधिकार सुरक्षित
सूरज विहार,द्वारका मोड़,नई दिल्ली-78