बदलता जीवन
प्रॉफिट लॉस की बात हो रही है,
नौकर बॉस की बात हो रही है।
घरों की अम्युनिति जीरो हो गई,
तो चवनप्राश की बात हो रही है।।
विमर्श में कॉमर्स सबपे छा रहा है,
इन्वेस्टमेंट सबको सिखाया जा रहा है।
आईडी खाता करके सबका अलग,
फाइनेंशियल इंक्लूजन बढ़ाया जा रहा है।।
अब नया पद और गरिमा सृजित होगा,
एक ही थैले में होंगे संत भोगी।
अब घरों में सी ई ओ ही बॉस होगा,
सोल्डआउट होंगे घर के बाप, रोगी।।
धीरे धीरे डेमोक्रेसी आ रही है,
गांव तक सड़के दिलों में गांठ बनती जा रही है।
फाइनेंशियली वाइबल नहीं, तो नहीं हो
सांस चलना जिंदगी है, बात ये बकवास होती जा रही है।।
कैसे रिश्ते क्या फरिश्ते क्या मनुज क्या देव,
गर नहीं मालूम इको कॉमर्स तो तुम कुछ नहीं।
सोचो एक दिन जब सभी कमर्शियल हो जाएंगे,
सत्य करुणा प्रेम “संजय”, तब बचेगा कुछ नहीं।।