बदनाम होने के लिए
ज़िन्दगी की दौड़ में नाकाम होने के लिए
लिख रहा हूं यह ग़ज़ल बदनाम होने के लिए
हर किसी को चाहिए अब ज़िन्दगी आराम की
हर कोई बेसब्र है गुलफ़ाम होने के लिए
बन गए वो कंस , रावण और दुर्योधन सभी
ज़िन्दगी जिनको मिली थी राम होने के लिए.
आम को जब से कहा जाने लगा राजा यहां
हर समर (फल) बेताब है अब आम होने के लिए
एक पागल गा रहा है शाम से गलियों में फिर
मय ज़रूरी है मुकम्मल शाम होने के लिए
–शिवकुमार बिलगरामी