गुरूर चाँद का
रुद्र के भाल को
ठंडा बना के रखता है,
चाँद के नूर में
आब ए हयात का मख़ज़न।
रासलीला कभी
मुकम्मल न हो पाती कतई,
शरद का चांद
अपनी रोशनी बिखेरता न गर।
ईद है करवा है
आशिकों का नामावर है चाँद।
मुसाफिर बनकर
फिरता चांदनी लुटाते हुए।
अंधेरी रात को
रोशन वही कर सकता फ़क़त,
गुरुर क्यों न करे चाँद
फलक जरा बता उनको।
हुनर की वजह से
सिर पर बिठा के रखा फलक,
गुरूर चाँद का
वाजिब है लाज़मी है सृजन।