बढे शहर की ओर अब (दोहे )
बढे शहर की ओर अब,पढ़े लिखों के पाँव !
सूना सूना हो गया ,..प्यारा अपना गाँव !!
रहा नहीं वो गाँव अब , रहे नहीं वे लोग !
मित्र आज देहात को, लगा शहर का रोग !!
नहीं बेचना भूलकर,अपने सिर की छाँव ।
पड जाये कब लौटना, महानगर से गाँव! !
रमेश शर्मा.