बढा दायरा सोच का
बढा दायरा सोच का , तेरा मनुज जरूर !
दुनिया से इंसानियत, किन्तु गयी अति दूर !!
कहने को तो आदमी, हुआ बहुत चालाक!
मानवता ने दे दिया, लेकिन उसे तलाक !!
करनी पे अपनी कभी,.. करना नहीं गुमान !
अच्छे अच्छों का यहाँ, टूट गया अभिमान !!
रमेश शर्मा