” बढ़ चले देखो सयाने “
आधार छंद : मन मनोरम छंद
मापनी : 2122 2122 2122 2122
गीत
रक्त जिनका खोल जाए , शौर्य बैठा है रिझाने ।
देश हित को प्राण देने , बढ़ चले देखो सयाने ।।
मोल माटी का समझते , भाल पर टीका लगाते ।
भारती की वंदना कर , उम्र , उस पर वारि जाते ।
रिपु दलों को रौंदने के , ढूंढते हैं वे बहाने ।।
देश हित को प्राण देने , बढ़ चले देखो सयाने ।।
वज्र सी काया गठन कर , लौह से लेकर इरादे ।
बल सँजो भुजदण्ड में हैं , डग भरे वे स्वप्न लादे ।
देश का गुणगान जिनमें , खूब गाते हैं तराने ।।
देश हित को प्राण देने , बढ़ चले देखो सयाने ।।
हैं सजग आँखे लिए वे , चौकसी दिन रात करते ।
काँप जाए रिपु सुने तो , गर्जना घनघोर करते ।
नभ धरा सागर हिमाला , सब बने उनके ठिकाने ।।
देश हित को प्राण देने , बढ़ चले देखो सयाने ।।
यद्ध में भैरव बने वे , ठोकते हैं ताल जब भी ।
खप्परों में रक्त रिपु का , नाचती बैतालिनी भी ।
हर समर में जीत उनकी , यह तिरंगा भी बखाने ।।
देश हित को प्राण देने , बढ़ चले देखो सयाने ।।
स्वरचित / रचियता :
बृज व्यास
शाजापुर ( मध्यप्रदेश )