बढ़ी कपकपी
कुंडलिया छंद…
बढ़ी कपकपी शीत ऋतु, रक्षक बने अलाव।
जीव-जन्तु सबके लिए, मुश्किल ठंड बचाव।।
मुश्किल ठंड बचाव, हवा चलती है सर-सर।
दुबक गये हैं लोग, रजाई कंबल में घर।।
ऐसा लगता शीत, लहर कर रहा लपलपी।
‘राही’ जले अलाव, ओर हर बढ़ी कपकपी।।
डाॅ. राजेन्द्र सिंह ‘राही’
(बस्ती उ. प्र.)