बड़े लोग
शीर्षक – बड़े लोग
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डॉ. सीमा की गाड़ी, काली चमचमाती सड़क पर फर्राटे भर रही थी, उन्हें जल्दी थी कॉलेज जाने की.. अभी दो दिन ही हुए थे गृहनगर में पोस्टिंग हुए…कॉलेज का पहला दिन था इसलिए समय से पहुंचना था, तभी अचानक सड़क पर भीड़ देखकर गाड़ी में ब्रेक लगाए ओर सड़क किनारे पार्क की, उतर के देखा तो एक महिला को घेरे हुए खड़ी थी भीड़….
‘क्या हुआ’ सीमा ने किसी एक एक से पूछा
‘कुछ नहीं, बहन जी, ये कोई पागल महिला हे, सड़क पर भूख प्यास से बेहाल पड़ी हुई थी, हम लोगो की नजर गई, तो उठाकर किनारे ले आए, कुछ खिलाया पिलाया तब कही जाकर होश आया’
सीमा चिकित्सक का फर्ज याद कर भीड़ के घेरे को तोड़ते हुए अंदर जा घुसी, जहा वह महिला बैठी थी…
‘ अरे बुआ तुम वो भी इस हाल में, मै सीमा हूं आपकी भतीजी, पहचाना मुझे ‘ भीड़ आश्चर्य से उन देख रही थी ओर सीमा अपनी बुआ को झकझोर रही थी, बुआ की आँखो से अनायास ही आंसू उमड़ पड़े ओर ओठो से एक शब्द फूटा
‘सी……मा…………..’
दोनों एक दूसरे से गले लगकर रोए जा रहे थे बस रोए जा रहे थे l
सीमा अपनी बुआ को लेकर गाड़ी तक आई ओर गाड़ी मोड़ कर घर की तरफ चल दी…
‘लेकिन बुआ, फूफा तो कह रहे थे कि तुम तीर्थ यात्रा पर गए हो’
‘नहीं सीमा बो सब उनकी चाल हे, बड़े लोग हैं कुछ भी कहे सही है, उन्होने मुझे शादी के दो साल बाद ही पागल करार दे घर से निकाल दिया… तब से भूख प्यास से बेहाल हो इधर उधर भटक रही हूँ ओर लोग समझते हैं कि मै पागल हूं,l
सीमा, बुआ की बात सुन अतीत में खोती चली गयी, बुआ मुझसे दस बड़ी होगी, साथ में घूमना फिरना, खेलना सभी होता था, जब माँ पापा ने बुआ की शादी तय की तब वो बीस की ओर मै दस साल की थी l
बुआ ने इस शादी के लिए कितना मना किया वो अपने पसंद के लड़के से शादी करना चाहती थी.. वो कहती रही कि भेया मुझे कुछ नहीं चाहिए न चाँद न सितारे… न आसमान… न दौलत….. लेकिन पापा के तर्को के आगे उनकी एक न चली…. वो बडे लोग हैं, खानदानी हे, राइस हे.. लड़का देखने में सुंदर है… ओर पता नहीं क्या क्या…. कुछ दिनों बाद शादी हो गई, बुआ अपने घर चली गई.. उसके बाद भेया भाभी एक कार एक्सिडेंट मे चल बसे.. ओर मै अंकल के साथ विदेश चली गई…. सब कुछ मस्तिष्क पर अंकित हुआ जा रहा था.. तभी सामने से आ रहे ट्रक के तेज हॉर्न से मेरी तन्द्रा टूटी…. बुआ के चेहरे को निहारा तो उनके मलिन चेहरे पर बड़े लोगों के दिए उपहार साफ नजर आ रहे थे l