बड़ि मुद्दति अरचन ते पाइयो
बड़ि मुद्दति अरचन ते पाइयो
प्रान में महकै सुहागिन नारी की,
छोटे गृह, हिय बड़े, तोहे कैसें समायो?
हिय की धरकन में तू बसे ऐसिन,
अपने बरे ताजमहल कबहूँ न बनायो।
घराड़ी दे दइहौ, असह्य बिलखत लोकनि बरे,
दुआयन सों लम्बी आयु होय, प्रभु सों माँगौ।
साथ रहौ मोरे सदा ही,
बिनु सिन्दूर मांग देखि न पायौ।
हमसे करत हौ बहुतै पियार,
एक पल रोवत तोहि देखि न पायौ।
दुआयन सों लम्बी आयु होय, प्रभु सों माँगौ।
हम बनि जैबै नवै जयदेव,
तू शुशीला बनि जैबै मोरे संग।
वो प्रेम करत रहिहैं जइसे,
हमहुँ उतैके ही तुझहिं चाहबै।
प्रेम के वश में जदि देव दुआ देइहैं,
तौ दुआयन सों लम्बी आयु होय, प्रभु सों माँगौ।
—श्रीहर्ष —-