बज उठीं खन खनन काँच की चूड़ियाँ
जब घिरी सावनी साँवली बदलियां
बज उठीं खन खनन काँच की चूड़ियाँ
छू पवन को चुनर भी लहरने लगी
जुल्फ चेहरे पे ऐसे बिखरने लगी
लग रहा कर रही हों चुहल बाजियाँ
नैन लगता है जैसे शराबी हुए
शर्म से गाल भी ये गुलाबी हुए
प्रीत लेने लगी मन में अँगड़ाइयाँ
मस्त बौछार में भीगने तन लगा
डूबने कल्पनाओं में ये मन लगा
गीत में भर रही है कलम शोखियाँ
16-07-2020
डॉ अर्चना गुप्ता
मुरादाबाद