बच्चों में नकल की प्रवृत्ति रोकनी होगी
बच्चों में नकल करने की प्रवृत्ति रोकनी होगी
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किसी भी राष्ट्र के बच्चे,नौनिहाल,किशोर और युवा वर्ग उस राष्ट्र के भविष्य हैं इसमें कोई संशय नहीं।प्रत्येक विकसित और विकासशील राष्ट्र शिक्षा के क्षेत्र में अपने आपको अग्रणी देखना चाहता है।विकास के वार्षिक खर्च का एक बड़ा हिस्सा शिक्षा पर खर्च होता है ताकि वहां के शिक्षार्थी उस राष्ट्र को विश्व पटल पर सुशोभित कर सकें।क्षेत्र विज्ञान का हो,अनुसंधान का हो,चिकित्सा का,उद्योग का या फिर कोई और हर जगह हम अपने आपको,अपने देश को उन बच्चों की प्रगति में देखते हैं।विभिन्न देशों में विद्यालयों में पढ़नेवाले बच्चे भी कई बार अपने शोध से विश्व को आश्चर्यचकित कर देते हैं।इन सबके लिए समर्पित स्वाध्याय की आवश्यकता के साथ साथ एक कुशल मार्गदर्शक की भी आवश्यकता होती है जिन्हें हम अपने गुरु में ढूँढते हैं।
छात्रों में नैतिक गुणों का विकास एक समर्पित शिक्षक का पहला उद्देश्य होता है।शिक्षक अपने छात्रों में गुणों को भर देना चाहता है ताकि अपने गुणों के बल पर वह सर्वत्र सफल होता जाए।शिक्षक बच्चों में सीखने की ललक पैदा करता है ताकि बच्चे जिज्ञासु हों और खुद अपने किये हुए सफल शोध से शिक्षा ग्रहण करते हुए सम्पूर्ण विश्व को आलोकित करें।
शिक्षा व्यवस्था के अनुसार सभी बच्चों को अगली कक्षा में प्रोन्नति के लिए परीक्षित होना पड़ता है,परीक्षा उत्तीर्ण करना होता है।परीक्षा के इतिहास में आरम्भ से ही कदाचार मुक्त परीक्षा पर जोर दिया जाता रहा है।परीक्षाएँ कहीं कदाचार मुक्त और कहीं कहीं कदाचार युक्त भी होती रही हैं।हम सैद्धांतिक रूप से कदाचार मुक्त परीक्षा पर आरंभ से ही जोर डालते रहे हैं और सफल भी होते रहे हैं।हमारी शिक्षा बच्चों को परीक्षा से भयभीत होना नहीं सिखाती,परीक्षा को उत्सव रूप में मनाना सिखाती है।परीक्षा एक प्रक्रिया है जिसमे बच्चों द्वारा पूरे वर्ष किए गये परिश्रम को जांचने का प्रयास किया जाता है।इसमें सफल होने वाले छात्र वे होते हैं जो पाठ्य पुस्तक पर केंद्रित होकर शिक्षक के मार्गदर्शन का उचित उपयोग कर पाते हैं।
परीक्षाएँ जीवन मे सफल होने के लिए एक आवश्यक कड़ी है।कोई भी इससे भाग नहीं सकता।जीवन के अलग अलग पड़ाव पर इसका स्वरूप भिन्न भिन्न है।कहीं मानसिक परीक्षा,कहीं आध्यात्मिक परीक्षा, कहीं कल-बल-छल की परीक्षा,कहीं धैर्य की विषम परीक्षा….. निरंतर परीक्षण का दौर।
कोरोना के इस विषम काल मे दो चीजें बुरी तरह से प्रभावित हुई हैं-मनुष्य का जीवन-काल और बच्चों की शिक्षा।शिक्षा तो पूरी तरह से धराशाई हो गयी।संभलने में निश्चित रूप से काफी लंबा समय लगेगा।लॉक डाउन के इस दौर में बच्चों को ऑनलाइन शिक्षा देना सिर्फ एक विवशता है।पढ़ाने वाले शिक्षक खुद इस पढ़ाई से संतुष्ट नहीं हैं,उन्हें पता है कि इस अध्ययन और अध्यापन का कोई विशेष लाभ नहीं।बच्चे जब विद्यालय आएँगे तो उन्हें फिर से सारे पाठ पढ़ाने ही होंगे,दूसरा कोई विकल्प नहीं।आज प्रत्येक घर मे ऑनलाइन विद्यालय संचालित हो रहा है।बच्चे सुबह से शाम तक लैपटॉप और मोबाइल में व्यस्त हैं।कोई बच्चा नाश्ता करते हुए कक्षा कर रहा है कोई आपस मे लड़ते हुए एक दूसरे को गालियाँ दे रहा है,कोई शिक्षक के साथ मजाक कर रहा है तो कोई शिक्षक के साथ अमर्यादित व्यवहार भी।अनुशासन नाम की कोई चीज़ नही रह गयी।आजकल के बच्चों में माता पिता से थोड़ा भय होना या उनका सम्मान करना आनुपातिक रूप से पहले की तुलना में काफी कम हो गया है।फलतः ऑनलाइन कक्षा के दौरान इनमें अनुशासनहीनता बढ़ी है।कोरोना के उद्भव और उत्तरोत्तर विकास के दौर में जितनी भी परीक्षाएँ हुईं उनमें बच्चों में नकल करने की प्रवृत्ति का विकास हुआ है इसमें कोई दो मत नहीं।बच्चों ने किताबें खोलकर,प्रश्नोत्तर को देखकर,अभिभावकों से पूछकर प्रश्नों के उत्तर लिखे हैं और आज भी उसी अभ्यास को दोहरा रहे हैं।बात सिर्फ नकल करने की या परीक्षा पास करने की नहीं है,बच्चों में गलत प्रवृत्ति का विकास हो रहा है जो अत्यंत दुःखद है
कहीं विकास के इस अंधे दौड़ में हमारे बच्चे गिर ना पड़ें।आंखों पर पट्टी बांधकर रफ्तार में दौड़ना,प्रतियोगिता में सफल होना बिल्कुल असंभव है।इस मोड़ पर माता पिता एवं अभिभावकों की जवाबदेही बढ़ जाती है।बच्चों को अध्ययन के लिए प्रेरित करना चाहिए ताकि बच्चे नकल का सहारा ना लें।परीक्षा के दौरान अभिभावक वीक्षक की भूमिका निभाएं ताकि उनका प्रतिपाल्य कदाचार की ओर उन्मुख ना हो सके।ऐसा करने से बच्चे के जीवन मे नैतिक मूल्यों का विकास होगा और अभिभावक उसके जीवन की मजबूत आधारशिला रख सकेंगे जो भविष्य में उन्हें और समस्त विश्व को गौरवान्वित कर सकेगा।
——-अनिल कुमार मिश्र,राँची,झारखंड,भारत