बचपन मुक्तक – ४
1) ????
बचपन होता है रंग-रंगीला-सा।
लगे सुबह सुहाने, शाम सजीला-सा
ना कोई फिक्र,ना ही कोई चिन्ता –
फूलों-सा चेहरा है खिला-खिला-सा।
2)
मुस्कुराता, इठलाता,लगे बचपन प्यारा-प्यारा है
जीवन की जीवन्तता, मस्ती के पल ढेर सारा है।
बेपरवाह, निश्चित, मासूमियत, शरारत से भरा-
ईश्वर की देन बचपन जिसे वे दिल से सँवारा है
3)
हठ, जिद्द, जिज्ञासा की जिसमें प्रबल उत्सुकता है।
दुनिया की झूठ और फरेब को नहीं जानता है।
इन नन्हे-नन्हे आँखों में कुछ सपने लिए हुए-
निर्भय,स्वच्छंद कल्पनाओं की उड़ान भरता है।
4)
दिन-भर खूब सोता और रात को अठखेलियाँ करता है।
नंगे पाँव बाहर जाता जी भर कर हुड़दंग करता है।
मंद-मंद मधुर मुस्कान सदा चेहरे पर बिखेरे हुए,
बरसात की पानी में खूब कागज की नाव चलाता है
????—लक्ष्मी सिंह ?☺