बचपन
मुक्तक
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खाना पीना खेलना, बचपन के हैं काम।
चलता रहता क्रम यही, हो जाती है शाम।
मगर किताबों का बहुत, बच्चों पर है बोझ।
साथ अपेक्षाएं बढ़ी, प्रतिस्पर्धा के नाम।
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बचपन की यादें बहुत, निश्छल मन के भाव।
वो पानी से खेलना, खूब चलाना नाव।
गिरना उठना भागना, नित्य सभी के साथ।
हँसते हँसते झेलना, छोटे मोटे घाव।
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-सुरेन्द्रपाल वैद्य