*बचपन*
बचपन
मन में जो आता करते हैं,
बचपन होता सबसे खास।
शहंशाह होते अपने मन के,
खोते नहीं कभी हम आस।।
खेल खिलौने गुल्ली डंडा,
जब चाहे तब हम खेलें।
लड़ाई झगड़ों से कभी डरे ना,
जिसे चाहे उसको पेलें।।
चोर सिपाही लुका छिपी,
कबड्डी खो-खो घुड़सवारी।
अपने मन के होते मालिक,
हदें तोड़ते हम सारी।।
बचपन की है ऐसी दुनिया,
खेलते-खाते रहते मस्त।
बड़े होकर काम बहुत हैं,
हर कोई दिखे इसमें व्यस्त।।
जब होता है चंचल मन,
हर कोई चाहता है बचपन।
रोक टोक और मार पिटाई,
मिले बचपन मंजूर है भाई।।