बचपन
बचपन
कहां चले जाते हो तुम
याद बहुत आते हो तुम
रह-रह कर मन भरमाते हो
कहां चले जाते हो तुम
तुम जाते हो जाती है मस्ती,
बेफिक्री मेरी ले जाते हो तुम
भीषण गर्मी ,कड़ी दोपहरी
जगती सारी थम – सी जाती,
गांव के हमजोली सारे
मिलकर थे सब धूम मचाते
किसी के आंगन
किसी चौबारे
पगडंडी पर धूल उड़ाते
छतें बजाते मृदंग सरीखे
सबको एक कराते हो तुम
बचपन कहां चले जाते हो तुम !!
संगी साथी मुझे बुलाते
मैं अधीर जाने को होता
मां चाहे मैं खाना खा लूं
चैन तभी उसे भी होता
पर हम चाहते साथी संग पहले
मां की ममता समझ न आई
हाथ छुड़ा फिर मैया से
ओझल सच हो जाते हैं हम
पल-पल की ये
मधुर स्मृतियां
याद करा जाते हो तुम
बचपन कहां चले जाते हो तुम !!
गर बचपन फिर से जी पता
फिर से मैं खोया धन पाता
फिर से भूल सभी चिंताएं
धमाल चौकड़ी
में रम रम जाता
माना पगले ! तुम सब दे देते
संगी साथी मस्ती सारी
गिल्ली डंडा स्वच्छंद घूमना
धमाल चौकड़ी, धूल उड़ाना
सरपट पगडंडी पर भागे जाना
सब कुछ मुझको लाकर दोगे
मान लिया
तुम
सब कर दोगे
सब संभव कर पाते तुम
पर इक बात मुझे बतलाओ
जिसके प्राण मुझी में बसते
मुझसे जिनके पग थे चलते
वह मां कहां से लाते तुम
वह मां कहां से लाते तुम,
बचपन कहां चले जाते हो तुम
याद बहुत आते हो तुम
याद बहुत आते हो तुम !!