“बचपन यूं बड़े मज़े से बीता”
बचपन यूं बड़े मज़े से बीता,
ज़वानी कट गई सारी जिम्मेदारी में!!
अब इस उमर में क्या रोना धोना,
बुढ़ापा कट ही जायेगा प्यार की बीमारी में!!
देखो सारे बाल अब सफ़ेद हो चुके,
ख़ुद को रोज़-ब-रोज़ संवारने की तैयारी में!!
यूं जो कटा था नादानी भरा बचपन,
ज़वानी यूं बीती संग दोस्तों की आवारी में!!
शिकायतें तो गैरों से है, तुम तो अपनी हो,
सो ज़िंदगी गुज़र रही करके खुद की तरफ़दारी में!!
कोई बैठा मखमली गद्दे पर, कोई तप रहा ईंटों की भट्ठी में,
खुश है कोई पैदल चल के, करके कोई साइकिल की सवारी में!!
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©️ डॉ. शशांक शर्मा “रईस”
बिलासपुर, छत्तीसगढ़