बचपन (भोजपुरी मुक्तक)
बचपन बन गईल याद ऊ बचपन कहाँ गईल,
भरल रहे उत्साह उमंग ऊ कहाँ गईल?
भटकत बा इंसान चैन अब तनिको नईखे
लड़ीकईयन के बात न जाने कहाँ गईल?
छूट गईल अब गांव, गांव अब शहर भईल
आपस में रहे प्यारा, प्यार सब खतम भईल।
बचपन के सब यार, यारी रहे गजब के
ब्यस्त भईल सब यार, यारी खतम भईल।।
छूट गईल घर द्वार, घर के अंगना छूटल
ऊ बचपन के प्यार माई के अचरा छूटल।
जीवन भईल बेरंग, रंग अब तनिको नईखे
कहाँ मीली ऊ प्यार मिलन के असरा छूटल।।
हीयरा के फूल आज शूल बन के आईल बा
बचपन के ईयार सगरे पचपन में समाईल बा।
ब्यस्त भईल आज सभे अपने-अपने काम में
जीनीगीया ई आज भंवजाल बन के आईल बा।।
लरिकईया में कहां कबो केहूँ देला धोखा,
एक दुसरे पर सबका केतना रहे भरोसा।
लेकिन जईसे जईसे उम्र के चलत बा पहिया
अपनन से अपनन के जग मे मिलेला धोखा।।
©®पं.संजीव शुक्ल “सचिन”
07/11/2017