बचपन के सबसे प्यारे दोस्त से मिलने से बढ़कर सुखद और क्या हो
बचपन के सबसे प्यारे दोस्त से मिलने से बढ़कर सुखद और क्या हो सकता है? किताबों से दोस्ती बहुत छुटपन में ही हो गई थी। ‘पापा जब बच्चे थे’ मैंने कोई चालीस वर्ष पहले पढ़ी थी। लेखक मित्र बलजीत भारती के सौजन्य से यह दुर्लभ पुस्तक एक बार फिर मेरे हाथों में है। रादुगा प्रकाशन मास्को, सोवियत संघ से इसका अंतिम संस्करण 1987 में प्रकाशित हुआ था।
-इशरत हिदायत ख़ान