बचपन के वो दिन कितने सुहाने लगते है
बचपन के वो दिन कितने सुहाने लगते है,
खुशियों से भरे बेफ़िक्री के दाने लगते है।
मोहब्बत में पड़े लोग मुझे दीवाने लगते है,
महबूब के अपने ख्वाब जो सजाने लगते है।
इंसान से उम्मीदें जहर का प्याला लगती है,
खुशियां भरी उड़ान अति मनमोहक लगती है।
खोए वक्त की यादें अमर कहानी लगती है,
संगीत की मिठास जीवन की मधुरता लगती है।
हास्य रंगों में रंगी हरकतें हंसी के बहाने लगते है,
दिल में सुख की बारिश चेहरे की मुस्कान लगती है।
– सुमन मीना (अदिति)
लेखिका एवं साहित्यकार