बचपन के पल
दुनिया की खुशियों में अपनी खुशियाँ बनाये हुए हैं हम
या यूँ कहें खुशियों कि अलग दुनिया बसाये हुए हैं हम
फूल से खिले हुए चेहरों का राज सबको क्या पता
बचपन की कितनी यादों को दिल में बसाये हुए हैं हम
बचपन की यादों में खुशियों के वो अफसाने दर्ज हैं
जहाँ छोटी-छोटी खुशियों को दीवारों में सजाए हुए हैं हम
बचपन छूटा जिम्मेदारियों का बोझ कंधों पर आ गया
हर जिम्मेदारी में भी उस बचपन को याद करते रहे हम
घास फूस की झोपड़ी में भी बचपन को हंसते हुए देखा है
इसलिए तो खुले आसमान में भी चहकते रहते हैं हम
सपनों का सृजन हमेशा से ही हम सभी की दुर्बलता है
इस दुर्बलता पर भी जीत का अभिषेक लगाते रहते हैं हम
इतिहास के पृष्ठ पर भी बचपन के कई कथाएँ हैं
उन कथाओं से भी जिंदगी को खुशनुमा बनाते हैं हम।