बचपन की साईकिल
मांँ मुझको भी साईकिल ला दो,
इसको चला कर मैं विद्यालय है जाऊंँ,
छोटे छोटे पैर है मेरे ,
बिन साईकिल कहीं जल्दी पहुंँच न पाऊंँ,
देर होती तो तेज दौड़ाऊंँ,
आहिस्ता-आहिस्ता साईकिल है चलाऊँ,
माँ तुझको भी इसमें बिठाकर ,
हाट-बाजार की सैर है कराऊँ,
बच्चों की बचपन की गाड़ी,
पैरों से चलती है साईकिल हमारी ।
✍🏼✍🏼
#बुद्ध प्रकाश;
मौदहा हमीरपुर ।