बचपन की वो बिसरी यादें…!!
बचपन की वो बिसरी यादें, लिख दूँ क्या.!
साथ बिताए थे जो लम्हें., लिख दूं क्या.!!
मेरे वादे…, तेरी क़समें…., लिख दूँ क्या..!
चाँद सितारों की सौगातें.., लिख दूँ क्या.!!
क्या मसला था, क्या मुद्दा था, रब जाने..!
कैसे भीगी मेरी पलकें..? लिख दूँ क्या..!!
जब जब ज़ुल्फ़ें गीली करके झटकीं तब.!
बे-मौसम की वो बरसातें लिख दूँ क्या…!!
दिल को ज़ख़्मी, आखिर किसने कर डाला
छुरियों जैसी., नीली आंखें लिख दूँ क्या.!!
मुझसे मेरा हाल न पूछो….., छोड़ो भी…!
तुम बिन कैसे कटती रातें लिख दूँ क्या..!!
ज़ुर्म – मुहब्बत.., जाने हम क्यूं कर बैठे.!
रोज़ अदालत की तारीख़ें लिख दूँ क्या..!!
माँ बाप बिना क्या पाया…, सब पूछ रहे.!
धक्के-मुक्के, घूँसा-लातें., लिख दूँ क्या..!!
याद रहा जो आज “परिंदे” को, वो बस
दाना, पानी और सलाखें लिख दूँ क्या..!!
पंकज शर्मा “परिंदा”🕊