बचपन का प्यार
बचपन का प्यार
“पापा, जब आप मेरी उम्र के थे, तो छुट्टी के दिन आपका समय कैसे बीतता था ?” दस वर्षीय बेटे ने अपने पिताजी से पूछा।
“बेटा, तुम्हारी उम्र में हम छुट्टी के दिन खूब मस्ती करते थे। खूब धमाचौकड़ी मचाते थे। सब लोग बहुत इंज्वॉय करते थे।” पिताजी ने बताया।
“अच्छा, किनके साथ खेलते थे ? मस्ती करते थे ?” बेटे ने पूछा।
“अपने दोस्तों और भाई-बहनों के साथ खेलते थे। बुआ और चाचाजी के साथ खूब मस्ती करते थे। पापा-मम्मी, दादा दादी के साथ भी मस्ती करते थे। हमारे दादाजी अक्सर हमें कंधे पर बिठाकर बाहर घुमाने ले जाते थे। क्या दिन थे वो।” पिताजी अतीत में खो गए थे।
“और टी.व्ही. कब देखते थे ? मोबाइल और विडिओ गेम ?” बेटे ने पूछा।
“हा… हा… हा… बेटा तब ये सब कहाँ थे। एक टी.व्ही. ही था, जिसमें एक-दो चैनल ही आते थे। मोबाइल और विडिओ गेम का तो नाम भी नहीं सुना था हमने।” पिताजी ने बताया।
“पापा, मेरे कोई भी भाई-बहन नहीं हैं। दोस्त भी बहुत कम हैं। सब ट्यूशन, टी.व्ही., मोबाइल और विडिओ गेम में बिजी। आप नौकरी में और मम्मी घर के कामकाज और मोबाइल में बिजी। मैं बहुत बोर हो जाता हूँ। हमारे दादा-दादी भी साथ में नहीं रहते। मम्मी और आप छुट्टी के दिन भी मेरे साथ नहीं खेलते। क्या आपको, मम्मी को या दादा-दादी को मेरे साथ खेलने का मन नहीं करता ? पापा, क्या मेरा बचपन यूँ ही टी.व्ही., मोबाइल और विडिओ गेम खेलते ही बीत जाएगा ?” बेटे ने बड़ी ही मासूमियत से पूछा।
पिताजी ने बेटे को सीने से लगाकर कहा, “नहीं बेटा, हम प्रॉमिस करते हैं कि अब हम मोबाइल और टी.व्ही. के साथ कम और आपके साथ ज्यादा समय बिताएँगे। चलो, मम्मी से बात करते हैं और तुम्हारे दादा-दादी को भी हमारे साथ यहाँ रहने के लिए ले आते हैं। वे भी तुम्हारे साथ खूब मस्ती करना और खेलना चाहते होंगे। तुम उन्हें बुलाओगे, तो वे कभी मना नहीं करेंगे। मेरे पापाजी यानि तुम्हारे दादाजी तो टीचर भी थे। वे तुम्हारी पढ़ाई-लिखाई और होमवर्क में भी हेल्प कर सकते हैं। तुम्हारी दादी माँ के पास तो असंख्य कहानियों का खजाना है। उनके साथ तुम कभी बोर हो ही नहीं सकते।” पिताजी ने कहा।
“फिर देर क्यों ? मैंने आप लोगों की बातें सुन ली हैं। आज आप दोनों की छुट्टी है। चलिए, मम्मी पापा से मिलने।” मम्मी बोलीं।
“हुर्रे…” बेटा प्रफुल्लित था और मम्मी-पापा उसे देख निहाल हुए जा रहे थे।
– डॉ. प्रदीप कुमार शर्मा
रायपुर, छत्तीसगढ़