बकरा जे कटवइबऽ तू
बकरा जे कटवइबऽ तू
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हमरा से बोलीं समधी जी गलती कवन भइल
जवना कारन कइले बानी रउवा मनवा मइल
कहलें समधी सुन लीं कवनो बात न बाटे खास
मास खिआवे के कहनी बनववले बानी घास
येही से कुछ मांसाहारी लोग बाटे गुरनात
बात भइल तऽ बात निभइतीं काहें कइनीं घात?
साँच कहीले रउवा बाटे सगरी दोष हमार
बकरा तऽ हम येही खातिर बन्हले रहनी चार
बाकिर बेटी जवन रउवा घर के बनी सिंगार
बतिए अइसन कहलसि गइनी हम ओकरा से हार
कहलसि हे बाबूजी सुन लऽ बकरा जे कटवइबऽ तू
धरम बियाह में अधरम कऽ के हमरे भागि जरइबऽ तू
श्लोक येने पढ़ल जाई ओने मास खिअइबऽ तू
देवता लो का आई येइजा उल्टे पाँव भगइबऽ तू
जवना अच्छत से दुवारि के बाबूजी पुजवइबऽ तू
ओही अन्न देव के कइसे मासे में सनवइबऽ तू
शुभ विवाह लिखववले बाड़ऽ अउरी कतल करइबऽ तू
मरल मुँह कइसन लागेला हमके तनी बतइबऽ तू
येतनो कहला पर सुन लऽ जे मास अगर बनवइबऽ तू
ये ससुरारी जाइबि ना हम ओ ससुरा पहुँचइबऽ तू
सुनले बतिया समधी के तऽ लोर झोर हो गइलें ऊ
गज भर सीना भइल बहू अइसन पा के अगरइलें ऊ
– आकाश महेशपुरी