बंधन यह अनुराग का
महका महका पावन पावन
मौसम कितना सावन सावन
महावर, घेवर , झूलों का
रक्षाडोर , करफूलों का
कलरव मधुर राग का
बंधन पर्व अनुराग का
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स्नेह सिक्त राखी जब आई
भाई की तब सजी कलाई
मन में ममता तरिणि बहे
अश्रु नीर यही व्यथा कहें
तीर्थ हुआ प्रयाग का
बंधन यह अनुराग का
-2-
पल पल धुँधलाय समय परिमल
विस्मृत होता प्यारा बचपन
दूरिय़ॊं ने अब बढा दी है
भगिनी भ्रात की स्नेह तड़पन
उत्सव मिलन त्याग का
बंधन यह अनुराग का
-3-
काग का छत से अभिनंदन
करे काँव काँव स्न्रेह क्रंदन
प्रतिक्षारत है स्नेह मिलन
राखी अक्षत तिलक चंदन
समय नहीं विराग का
बंधन यह अनुराग का!
-ओम प्रकाश नौटियाल
बड़ौदा ,गुजरात