बंद दरवाजा
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बंद दरवाजा-
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“कितने लोगों से मिली आज ?”अंतर्मन ने पूछा
“तुझे नहीं मालुम क्या जो मुझसे ही जानना है?”जैसे झुंझला गयी अक्सा ।
“मालुम है ,तभी तो पूछा।सच बोल …कितनों से मिली और क्या महसूस किया ?” अंतर्मन ने जैसे कठोरता से कहा
“कुछ अपरिचित ,कुछ परिचितों से ..।”कुछ सोचते अक्सा ने बोला
हम्म
यानि अपने मन का वो कमरा जिसे बैठक कहते हैं या स्वागत कक्ष ।तू आज वहीं तक सीमित रही ?”
“…मतलव …!!”
“मतलव यह कि तू प्रतिदिन अपने दिल के तीन कमरों में जाती है और चौथे में झांकती तक नहीं …!!क्यों?
“मैं समझी नहीं …क्यों उलझा रहे हो ।वैसे ही परेशान हूँ..।”इस बार अक्सा सच में खुन्नस खा गयी।
“सुन , तेरे दिल के चार हिस्से हैं जिनमें तू केवल रोज तीन हिस्सों में ही घूमती हो।”
“खुल कर बोलो ….।”चिढते हुये अक्सा ने धम्म से खुद को बिस्तर पर धकेला ।जैसे बहुत थक गयी हो और कुछ सुनने समझने की शक्ति न हो ।
“तू रोज सुबह पारिवारिक हिस्से में जाती है जहाँ तू है ,तेरे पति ,बच्चे हैं ,परिवार के अन्य लोग भी हैं।यहाँ किसी बाहरी व्यक्ति का प्रवेश नहीं होने देती तू।सच है न ?”
“हाँ ,मेरे परिवार में किसी बाहरी को दखल देने का हक नहीं ।”एक गहरी साँस ली अक्सा ने
“ओके , दूसरा हिस्सा वह है जिसमें हम परिचितों,रिश्तेदारों ,अपरिचितों सब से मिलते हैं।यानि बैठक । जिसमें सभी का स्वागत करती है इसे स्वागत कक्ष भी कह सकती है …है न!!”
“हाँ , यह भी सही है । तीसरा कक्ष कौनसा देखा तुमने मेरा?”
“अक्सा इस बार रिलेक्स थी ।होठों पर हल्की सी मुस्कान आई
“तेरा तीसरा हिस्सा है तेरा निजी कमरा। जहाँ तू एकांत में स्वयं में ही खोई ,स्वयं से ही मिलती है ।यहाँ बाहरी तो क्या अपने ही आत्मीय तक का प्रवेश निषेध है ।सच कहा न मैंने?”अंतर्मन ने जैसे टटोला उसे
“अरे …तुम कितना अच्छे से जानते हो मुझे !!”जैसे अक्सा की सारी थकान उतर गयी
“फिर यह चौथे कमरे का ताला क्यों बंद है अब तक?उसे क्यों नहीं खोलती ?क्या डर है?क्यों कतरा रही हो उस बंद ताले को खोलने से ?कौन सा भय है ?”एक ठहरा हुआ ठंडा अहसास अक्सा को झकझोर गया।
स्वरचित ,मौलिक
मनोरमा जैन पाखी
भिंड मध्य प्रदेश