बंदूकों-तलवारों से (गीत)
बंदूकों-तलवारों से (गीत)
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आजादी थी मिली देश को बंदूकों-तलवारों से
(1)
भारत को स्वाधीन कराया भगत सिंह की फाँसी ने
लिए हुए तलवार हाथ में लड़ती रानी झाँसी ने
भरे शौर्य से काकोरी के गौरवमयी प्रहारों से
आजादी थी मिली देश को बंदूकों-तलवारों से
(2)
यह सुभाष थे जो गढ़कर सेना आजादी लाते
मिलती है यह सिर्फ खून से दुनिया को बतलाते
अंग्रेजों से लड़ा युद्ध नेता जी ने हथियारों से
आजादी थी मिली देश को बंदूकों-तलवारों से
(3)
दो जन्मों की मिली जेल थी जिनको काला-पानी
यह सावरकर गली जेल में जिनकी धवल जवानी
कभी न होगा उऋण देश चौरा-चौरी की धारों से
आजादी थी मिली देश को बंदूकों-तलवारों से
(4)
समझौते की किंतु मेज पर हुआ देश बँटवारा
मरा-कटा-भागा अपनी ही धरती से रण हारा
क्यों सब कुछ यह हुआ प्रश्न है सारे जिम्मेदारों से
आजादी थी मिली देश को ,बंदूकों तलवारों से
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रचयिता : रवि प्रकाश , बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451