बंदिश
बंदिश
बिन बंदिश शोभा कहाँ,होते लोग स्वछन्द।
नियम हीन अच्छा नहीं,कभी काव्य मय छ्न्द ।।
बंदिश है मर्याद की,मनाव तभी महान।
बिन मर्यादा यदि रहे,कौन कहे इंसान ।।
बंदिश कुछ सरकार की,थोड़ी बनी समाज ।
नीति धर्म व्यवहार से,शासक करता राज।।
बंदिश लगती हैं बुरी,अल्प ज्ञान के साथ ।
ज्यों दुष्टी के राज में,कटें दंड से हाथ ।।
अभिव्यक्ति के नाम पर,कुछ भी कहते लोग।
बंदिश होना चाहिए,नियम नीति कुछ योग ।।
बंदिशे स्वीकार नहीं,होते सदा विवाद।
चाहे सभी स्वछन्दता,पूर्ण रहे आजाद।।
स्वार्थ साधने के लिए,बंदिश बने कलंक।
हनुमान से वीर जहाँ,जला रहे थे लंक।।