बंदिशे
. एक दीवार है , ईंटों की नहीं…
बंदिशों की,नियमों की,रिवाजों की बड़ी सख्त सी
जिसके एक ओर तुम हो और दूसरी ओर मैं,,
हम सुन सकते हैं महसूस कर सकते हैं
पर मिल नहीं सकते कभी।
कुछ रिश्ते ऐसे बनते हैं जीवन में जिनके ना कोई नाम होते हैं ,जो ना कभी एक हो सकते हैं ।पर हाँ !वह एकदम सहज होते हैं।
एक ना हो पाना उनकी नियति कहें या कहें ढेरों सामाजिक प्रतिबंध जोकि सही भी हैं । हालांकि हम यहां सही गलत के आयाम प्रस्तुत नहीं कर रहे हैं। पर हाँ! एक दीवार रहती है इन दो लोगों के बीच। कैसी दीवार ? हाँ !!! ईंट की दीवार नहीं बल्कि उससे भी सख़्त दीवार बंदिशों की। बंदिशें सामाजिक नियमों की… बंदिशें रिवाज़ों की….
बंदिशें कैसी भी हो कितनी भी सख़्त क्यों न हों पर दो लोगों को एक दूसरे को महसूस करने से नहीं रोक सकती ,नहीं रोक सकती उनको एक दूसरे के प्रति सच्चा लगाव होने से।
धन्यवाद …..