बंदिशे
ख़यालो को आजाद रखा करो ।
बंदिशे और घुटन बहुत कुछ तबाह कर देती है ।
कभी खामोश बैठ देखे थे उसने कई ख़्वाब ।
हकीकत की दुनिया से बेखबर समझ ही
नहीं पाई वो रीति-रिवाज ।।
मन मसोज कर कितने गुजारे थे लम्हे उसने ।
टूटे हुए मन की, सुनी ही नहीं किसी ने आवाज ।।